एक बहुत धनवान राजा हुआ करता था। उसके पास एक पालतू बन्दर था। राजा उसे अपनी जान से भी ज्यादा चाहता था। वह
बन्दर से बार-बार एक ही बात कहता था कि, मेरे मित्र, तुमसे अच्छा मेरा कोई और मित्र नहीं है। प्रतिदिन सुबह को राजा अपने बन्दर के साथ अपने शाही बगीचे में सैर को जाता था। रोज की तरह , सुबह को राजा अपने बगीचे में टहल रहा था, तभी बंदर की नज़र घास में छिपे हुए साँप पर पड़ी जो राजा को काटने की तैयारी में था। बन्दर ने अपने मालिक को बचाने सही समय पर साँप को, झपट कर पकड़ लिया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। इस प्रकार बन्दर ने राजा की जान बचा ली। जब राजा को इस बात का पता चला तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। राजा को अपने बन्दर की इतना बड़ा गर्व था, की शीघ्र ही उसने अपने मंत्रियो के विरोध के बावजूद बन्दर को अपना निजी अंगरक्षक नियुक्त कर दिया।
राज्य के मंत्रियो ने राजा से खूब अनुरोध किया कि बन्दर सिर्फ एक जानवर है, और वह मनुष्यों की भांति अंगरक्षक का कार्य नहीं कर सकता। किन्तु राजा ने किसी की नहीं सुनी । राजा ने कहा कि ‘बन्दर उसे बहुत प्यार करता है और वह उसके प्रति बहुत वफादार भी है। अंगरक्षक का सबसे
महत्त्वपूर्ण गुणा ये ही होता है। क्या तुम सब ने नहीं देखा कि किस प्रकार उसने मेरी जान बचायी?” राजा के इन शब्दों ने उन सब लोगों को चुप कर दिया।
बन्दर को अंगरक्षक बने कई महीने बीत गए । और एक दिन जब राजा अपने शयनकक्ष में आराम कर रहा था उसने बन्दर से कहा ‘मैं बहुत थका हुआ महसूस कर रहा हूँ, और कुछ घण्टों के लिए सोने जा रहा हूँ, मैं कोई अशांति नहीं चाहता हूँ, इसलिए न कोई अन्दर आये और न ही कोई मुझे परेशान करे, समझ गए न तुम’|
बन्दर बोलै ‘हाँ मालिक, मैं आपके आदेश का पालन करूंगा ।’
शीघ्र ही राजा सो गया और बन्दर बड़ी ही सतर्कता से अपना कार्य करने लगा। वह राजा के पास जाकर खड़ा हो गया और सतर्कता से चौकसी करने लगा। तभी कुछ समय बाद एक मक्खी राजा के शयनकक्ष में घुस आयी। और सोते हुए राजा के नाक पर आकर भिनभिनाने लगी। राजा ने उसे खूब भगाया और करवटें बदलने लगा। उसकी शान्तिपूर्ण नीद में खलल पड़ रहा था।
बन्दर को राजा का आदेश अच्छी तरह से पता था, वह तुरन्त मक्खी को उड़ाने की कोशिश करने लगा, लेकिन मक्खी बार-बार राजा के चेहरे पर आ के भिनभिनाने लगती। बहुत कोशिशों के बाद बन्दर मक्खी को भगाने में सफल हो ही गया। ऐसा कर के बन्दर बहुत खुशा हुआ और खुद पर मुस्कराने लगा। तभी थोडी देर बाद मक्खी फिर वापस आ गयी। इससे बन्दर गुस्से में लाल पीला हो गया और उसने मक्खी को समाप्त करने का ही निश्चय कर लिया। उसने राजा की तलवार उठायी और मंडराती हुई मक्खी को ढूंढ़ने लगा। तभी अचानक मक्खी राजा की गर्दन पर बैठ गयी, बन्दर ने जैसे ही मक्खी को देखा तो ही उसे मारने के लिए उसने पूरी ताकत से मक्खी पर तलवार दे मारी।
उसने सोचा कि इससे वह मक्खी के दो टुकड़े कर देगा। पर दुर्भाग्य से तलवार मक्खी को नहीं लगी और राजा की गर्दन कट गयी और राजा मर गया। सारी प्रजा अपने राजा की मृत्यु से काफी दुखी हुईं और प्रजाजन इस दुर्घटना” पर विलाप करने लगे।