राजा का घोड़ा भी काफी थक चुका था और उसे बहुत प्यास भी लगी थी. रास्ते में एक तालाब को देखकर ठाकुर जयसिंह ने अपने घोड़े को रोका और नीचे उतरकर घोड़े को पानी पिलाने के लिए उस तालाब के पास पहुंचे।.
आधी रात का समय था घोड़ा जैसे ही आगे बढ़ा राजा को एक आकृति दिखाई दी जो धीरे-धीरे इंसानी रूप में आ गयी . राजा उसे देखकर डर गया, उस भूत ने राजा को कहा कि भी बहुत मुझे प्यास लगी है किन्तु एक श्राप के कारण मैं इस कुएं का पानी को नहीं पी सकता.
मुझे भी पानी पीला दीजिये राजा ने उस भूत को भी पानी पिलाया,राजा की इस दयालुता को देखकर भूत ने उससे कहा किआप जो भी आदेश देंगे, उल से मैं पूरा करूँगा।
राजा ने आत्मा को कहा कि वह उसके महल में एक बावड़ी का निर्माण करे और उसके राज्य को सुंदर बना दे. आत्मा ने राजा के आदेश को स्वीकारते हुए कहा कि वो ये कार्य प्रत्यक्ष रूप से नहीं अप्रत्यक्ष रूप से पूरा करेगा,दिनभर में जितना भी काम होगा वह रात के समय 100 गुना और बढ़ जाएगा.
उस आत्मा ने राजा को कहा किन्तु आप इस रहस्य को किसी को नहीं बताएंगे.जिस दिन भी यह भेद खुला , उसी दिन मेरा काम खत्म हो जाएगा।
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अगले ही दिन से महल एवं बावड़ी Bhoot Bawadi की इमारतें बनने लगीं। लगीं,पूरे गांव में कौतुहल छा गया की महल से रात में पत्थर ठोंकने की रहस्यमय आवाजें आती है , दिन-प्रतिदिन निर्माण कार्य बहुत गति से आगे आगे बाद रहा था ।
एक दिन रानी साहिबा ने महल व बावड़ी के विस्तार का रहस्य पूछा तो ठाकुर साहब ने उन्हें भी वो राज बताने से साफ इन्कार कर दिया।
रानी रूठ गई और अनशन पर बैठ गयी । कई दिनों तक अनशन करने के कारण रानी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। रानी के जिद के आगे राजा हर गया और आख़िरकार राजा ने यह राज रानी को बता ही दिया.
ठाकुर ने यह राज जैसे ही रानी को बताया सारा काम वहीं रुक गया.
और सात मंजिला महल केवल दो मंजिला ही बन कर रह गया और पानी की बावड़ी का अंतिम हिस्सा, दीवार भी अधूरी ही रह गई जो आज भी ज्यों का त्यों ही है
बावड़ी Bhoot Bawadi की गहराई लगभग दो सौ फ़ुट से भी अधिक होगी । इसमें नक्काशीदार चौदह खम्भे हैं तथा अन्दर जाने के लिए 174 सीढ़ियाँ हैं।
सबसे अधिक आश्चर्यजनक की बात यह है कि बावड़ी में बड़े-बड़े पत्थर लॉक तकनीक से लगाये गये हैं, जो की अधरझूल होने पर भी गिरते नहीं हैं।